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ऑनलाइन संस्करण । सदस्यता लें । किसी मित्र को भेजें । OSHO.com दौरा
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इंटरनेशनल न्यूज़लेटर अगस्त, 2013 |
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दीवार पर लगे आईने, बता मैं हमेशा क्यों गिरती हूं |
मेरा साथी मुझसे ईर्ष्या करता है और ऐसा लगता है मानो वह मुझे अधिक महत्वपूर्ण बनाता है जितनी कि मैं नहीं हूं।
“ईर्ष्या नहीं', मैं सोचता हूं वह महसूस करता है कि वह हीन है। तुम गलत शब्द इस्तेमाल कर रहे हो। वह सोचता है कि तुम एक देवी हो और वह मूल्यहीन। क्या यह ऐसा है? ( वह सिर हिलाती है) तब यह ईर्ष्या नहीं है …" |
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पंख की तरह छूना |
“इसे दिन में कई बार करें।
अवधि: एक क्षण करना भी अच्छा होगा लेकिन एक ध्यान की तरह कम से कम 40 मिनट करना जरूरी है।
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पहला चरण: "एक कुर्सी पर बैठकर या रेलगाड़ी में सफर करते हुए आंखें बंद करें और अपने हाथों को धीरे से आंखों पर रखें, दबाव न डालें
शिथिल मन में विचार नहीं चल सकते, वे जम जाते हैं। वे तनाव के सहारे जीते हैं। तो जब आंखें स्थिर होती है
…" |
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प्रेम सियारी |
“इस समय संसार में सबसे सौभाग्यशाली व्यक्ति कौन है? उत्तर है, प्रेम सियारी, याने कि मैं। यह मेरे संन्यास का नाम है। इस समय मैं स्वर्ग में बैठी हूं: जोरबा द बुद्धा के स्विमिंग पूल के किनारे भोजन स्थल में…जो पूणे के ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसार्ट का एक भाग है। |
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परिदृश्य ऐसा जैसे किसी गांव में, प्रकृति से घिरे हुए पर्वत श्रृंखला…" |
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अभिभूत होना |
“अक्सर एक भाव मेरे हृदय और मेरे पूरे अंतरतम को घेर लेता है । वह गहन प्रेम में होता है और भय, संताप, दुख, असहायता और अवसाद में भी होता है। |
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सभी विभिन्न आवेगों में निश्चित ही बहुत समानता है: वह है भावावेशित हो जाना। यह चाहे प्रेम हो, चाहे यह घृणा हो…" |
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जिस क्षण तुम स्वस्थ होते हो…अपनी बीमारी से बाहर आते हो, तुम्हें स्वास्थ्य का अनुभव होगा, लेकिन जब यह तुम्हारा प्रतिदिन का स्वाभाविक अनुभव बन जाता है, प्रत्येक क्षण का…" |
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मरौ हे जोगी मरौ |
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पंथ प्रेम को अटपटो |
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इस पुस्तक में गोरख पर बोलते हुए ओशो कहते हैं: ‘गोरख ने जितना आविष्कार किया मनुष्य के भीतर अंतर-खोज के लिए, उतना शायद किसी ने भी नहीं किया है। उन्होंने इतनी विधियां दीं कि अगर विधियों के हिसाब से सोचा जाए तो गोरख सबसे बड़े आविष्कारक हैं।’
गोरख के परम रूपांतरणकारी सूत्रों को आज की भाषा में उजागर करने के साथ-साथ, इस पुस्तक में ओशो द्वारा उत्तरित प्रश्नों में से कुछ: … |
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होश आत्मा का दीया है। वही ध्यान है, उसी को मैं मेडिटेशन कहता हूं। होश ध्यान है। निरंतर अपने जीवन के प्रति, सारे तथ्यों के प्रति जागे हुए होना ध्यान है। वही दीया है, वही ज्योति है। उसको जगा लें और फिर देखें, पाएंगे, अंधेरा क्रमशः विलीन होता चला जा रहा है। एक दिन आप पाएंगे, अंधेरा है ही नहीं। एक दिन आप पाएंगे, आपके सारे प्राण प्रकाश से भर गए। और एक ऐसे प्रकाश से, जो अलौकिक है। एक ऐसे प्रकाश से, जो परमात्मा का है। एक ऐसे… |
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अगस्त 2013 न्यूज़लेटर |
ओशो इंटरनेशनल 410 पार्क एवेन्यू, 15 वीं मंजिल, न्यूयॉर्क, एनवाई 10022 |
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