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इंटरनेशनल न्यूज़लेटर |
अगस्त, 2014 |
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रात के समय निर्णय मत लो |
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मैं अपने और अपनी प्रेमिका के बीच संबंधों को लेकर मुश्किल में पड़ गया हूं कि इन्हेँ रखूं कि खत्म करूं? |
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"जल्दबाजी मत करो, क्योँकि होता यह है कि मन के अपने अंधेरे व उजाले क्षण होते हैँ, दिन के क्षण और रात्रि के क्षण। जब दिन का क्षण आता है तो हर चीज बहुत अच्छी लगती है; तुम हर चीज साफ-साफ देख सकते हो।
जब रात आती है तो हर चीज काली हो जाती है और तुम कुछ भी साफ-साफ नहीँ देख पाते।
"यह पूरी संभावना है कि तुम रात के क्षण में, अंधेरे क्षण में, क्षीण ऊर्जा के क्षण में ऐसा कोई निर्णय ले लेते हो। अगर तुम उस घड़ी में कोई ऐसा निर्णय ले लेते हो तो यह समझ का निर्णय न होगा क्योँकि तुमने इसी स्त्री के साथ सुंदर क्षण भी देखे हैँ।
"जरा सोचो: हम यहां बैठे हैं, यहां प्रकाश है, तुम मुझे देख सकते हो और तुम यहां सबको देख सकते हो, तुम पेड़ोँ को देख सकते हो—और अचानक बिजली चली जाती है। अब तुम किसी को नहीं देख सकते; पेड़ और बाकी सब कुछ अब नहीं हैं। तो क्या तुम कहोगे कि अब पेड़ों का अस्तित्व मिट गया है, व्यक्तियोँ का अस्तित्व मिट गया है…?" |
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इकट्ठा नहीं करता, कुछ संगृहीत नहीं करता।
"उसके लिए कोई अतीत नहीं है, वह हमेशा ताज़ा होता है, उतना ही ताज़ा जितने कि ओस कण। वह क्षण-क्षण जीता है, आणविक होता है। उसका कोई सातत्य नहीं होता, कोई परंपरा नहीं होती। प्रति पल मरता है और प्रति पल पुन:जन्मता है। वह श्वास की भांति होता है: तुम श्वास लेते हो, श्वास छोड़ते हो; फिर श्वास लेते हो, फिर छोड़ते हो। तुम उसे भीतर सम्हाल कर नहीं रखते।
"यदि तुम श्वास को सम्हाल कर रखोगे, तुम मर जाओगे क्योंकि वह बासी हो जाएगी, मुर्दा हो जाएगी। वह अपनी जीवन-शक्ति, जीवन की गुणवत्ता खो देगी। प्रेम की भी वही स्थिति होती है –– वह सांस लेता है, प्रति पल स्वयं को नया करता है। तो जब कोई प्रेम में रुक जाता है और सांस लेना बंद करता है, तो जीवन का समूचा अर्थ खो जाता है…" |
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अक्षर |
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मैं हिन्द महासागर की ओर दक्षिण-पूर्व अफ्रीका के एक देश मोज़ामबिक में पैदा और बड़ा हुआ हूं। मैं अपनी मां का इकलौता बच्चा था और दस वर्ष का होने तक उनके साथ रहा।फिर मेरी मां एक |
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दूसरे साथी के साथ रहने लगीं। मैं पैदाइशी क्रिश्चियन था, लेकिन मेरी मां के दूसरे पति मुसलमान थे इसलिए मेरा धर्म बदल कर इस्लाम हो गया। इन दोनों धर्मों के संस्कार ने मेरे अंदर ईश्वर के प्रति बहुत सा अपराध-बोध और डर डाल दिया था और मानो मैं नरक जाने की कगार पर था। मुझे बहुत से नैतिक पाठ पढ़ाए गए जैसे कि दान, समाज सेवा, और शादी तक ब्रह्मचर्य, जो कि सुनने में अच्छी चीजें लग सकती हैं, लेकिन मैंने पाया कि वे दमनकारी और सीमित करने वाली हैं।
शायद इसी पृष्ठभूमि की वजह से, जब मैंने अपनी मां की अलमारी में रखी ओशो की एक किताब को पढ़ा तो वह मुक्त होने जैसा अनुभव था। किताब थी, फियर: अंडरस्टैंडिंग एंड एक्सैप्टिंग दि इंसिक्योरिटीज़ ऑफ लाइफ । उसकी ओर मुझे किसी चीज ने खींच लिया। मैं पहले पन्ने से मुग्ध हो गया, जहां ओशो ने एक आदमी की छोटी सी कहनी सुनाई है जिसने पूरी अंधेरी रात गहरी खाई में गिर जाने के भय से चट्टान से चिपके-चिपके गुजार दी, जब कि वह थी ही नहीं, क्योंकि वह देख नहीं पा रहा था कि वह जमीन से कुछ फीट ऊपर ही है।…" |
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साथ समस्या बड़ी है। वह यह, कि वे नहीं जानते लेकिन मानते हैं कि वे जानते हैं। जो लोग मानते हैं कि उन्हें स्पष्टता है ऐसे लोग बड़ी मुश्किल में पड़ ही गए हैं। उनकी स्पष्टता सतही है। वस्तुत: वे स्पष्टता के बारे में कुछ नहीं जानते, वे जिसे स्पष्टता कहते हैं वह सिर्फ मूर्खता है।
"मूर्ख लोग बहुत स्पष्ट होते हैं -- इन अर्थों में कि उनके पास उलझन महसूस करने की बुद्धि भी नहीं होती।
"उलझन महसूस करने के लिए बड़ी बुद्धिमानी चाहिए।
"सिर्फ बुद्धिमान लोग ही उलझन महसूस करते हैं और साधारण लोग जीते रहते हैं हंसतेम मुस्कुराते, पैसा इकट्ठा करते, ज्यादा ताकत, ज्यादा शोहरत के लिए संघर्ष करते हुए। तुम उन्हें देखोगे तो थोड़ी ईर्ष्या होगी। उनमें इतना आत्म विश्वास नजर आता है, वे इतने खुश दिखाई देते हैं…" |
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केवल बीमार व्यक्ति स्वास्थ्य में रुचि रखते हैं। जिस क्षण तुम स्वस्थ होते हो…अपनी बिमारी से बाहर आते हो, तुम्हें स्वास्थ्य का अनुभव होगा, लेकिन जब यह तुम्हारा प्रतिदिन का स्वाभाविक अनुभव बन जाता है, प्रत्येक क्षण का, तब तुम्हारे पास बिमारी से विपरीत कोई तुलना करने के लिए नहीं होती।
"क्या तुमने निरीक्षण किया कि जब तक तुम्हारे सिर में दर्द न हो तुम्हें तुम्हारे सिर का पता नहीं चलता? क्या तुम अपने सिर के प्रति जागरूक होते हो? तुम्हें तुम्हारे सिर का पता केवल दर्द होने पर चलता है। सिरदर्द से इसका ज्ञान होता है, जिन लोगों को सिरदर्द का अनुभव नहीं है वे नहीं जानते कि बिना दर्द का स्वस्थ सिर क्या होता है…" |
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हमारे वर्तमान बेस्ट सेलर्स |
जीवन गीत |
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ध्यान साधना शिविर, नासिक में ध्यान प्रयोगों एवं प्रश्नोत्तर सहित ओशो द्वारा दिए गए पांच प्रवचन
जीवन में जितने ऊपर जाना हो, उतना ही जीवन के साथ श्रम करना जरूरी है। लेकिन यह श्रम तभी होगा जब हमें सबसे पहले यह आकांक्षा, यह प्यास, यह |
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अभीप्सा पैदा हो जाए कि मुझे जीवन में कुछ होना है, कुछ पाना है, कुछ खोजना है।... |
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