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दिसंबर, 2014
 
आप जानते ही होंगे कि हम सूचना युग में जी रहे हैं। लोग बातचीत करते हैं कि हम पर सूचनाओं का बोझ है और आप सोचते हैं कि लोग एक दूसरे से पूरी तरह से जुड़े हैं और दुनिया में जो हो रहा है उसे जानते हैं। लेकिन हकीकत ऐसी नहीं है।

हकीकत में सूचना युग 50,000 साल पहले शुरु हुआ। उससे पहले लाखों साल तक हमारे दो पांवों पर चलनेवाले पूर्वजों के जीवन में तुलनात्मक रूप से कोई बदलाव नहीं होता था। लोगों के पास पत्थर के हथियार होते थे लेकिन वे वही हथियार थे जो सालों साल चलते थे। जैसे मेवे को तोड़ने के लिए आप पत्थर का इस्तेमाल करते हैं। वह एक पुराना उपकरण ही है। उसमें कोई संशोधन नहीं हुआ है।
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माह का ध्यान
मैं कहां हूं?
रमण अपने शिष्यों को एक विधि देते थे। उनके शिष्य पूछते थे: 'मैं कौन हूं?' तिब्बत में भी वे एक ऐसी ही विधि का उपयोग करते हैं जो रमण की विधि से भी बेहतर है। वे यह नहीं पूछते कि मैं कौन हूं। वे पूछते हैं कि 'मैं कहां हूं?' क्योंकि यह 'कौन' समस्या पैदा कर सकता है। जब तुम पूछते हो कि 'मैं कौन हूं?' तो तुम यह तो मान ही लेते हो कि मैं हूं, इतना ही जानना है कि मैं कौन हूं। यह तो तुमने पहले ही मान लिया कि मैं हूं; यह बात निर्विवाद है। यह तो स्वीकृत है कि मैं हूं; अब प्रश्न इतना ही है कि मैं कौन हूं। केवल प्रत्यभिज्ञा होनी है, सिर्फ चेहरा पहचानना है; लेकिन वह है--अपरिचित ही सही, पर वह है।

तिब्बती विधि रमण की विधि से बेहतर है। तिब्बती विधि कहती है कि मौन हो जाओ और खोजो कि मैं कहां हूं। अपने भीतर प्रवेश करो, एक-एक कोने-कातर में जाओ और पूछो: 'मैं कहां हूं?' तुम्हें 'मैं' कहीं नहीं मिलेगा। तुम उसे कहीं नहीं पाओगे। तुम उसे जितना ही खोजोगे उतना ही वह वहां नहीं होगा। और यह पूछते-पूछते कि 'मैं कौन हूं?' या कि 'मैं कहां हूं?' एक क्षण आता है जब तुम उस बिंदु पर होते हो जहां तुम तो होते हो, लेकिन कोई 'मैं' नहीं होता, जहां तुम बिना किसी केंद्र के होते हो। लेकिन यह तभी घटित होगा जब तुम्हारी अनुभूति हो कि विचार तुम्हारे नहीं हैं। यह ज्यादा गहन क्षेत्र है--यह 'मैं-पन'।...
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ऑडियो बुक
बिन बाती बिन तेल
 
झेन, सूफी एवं उपनिषद की कहानियों एवं बोधकथाओं पर पुणे में हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए सुबोधगम्य उन्नीस प्रवचन इस प्रवचनमाला में बोधकथाओं के माध्यम से ओशो ने मन और जीवन, प्रेम और श्रद्धा, बोध और विश्वास जैसे अनेक विषयों पर एक अपूर्व अंतर्दृष्टि प्रदान की है। ओशो आमंत्रण देते हैं, ‘‘उस दीये को खोजो जो बिना तेल के जलता है, बिना बाती के। वह तुम्हारे भीतर है। उसे तुमने कभी खोया नहीं, एक क्षण को उसे खोया नहीं है; अन्यथा तुम हो ही नहीं सकते थे।’’
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दीया तले अंधेरा
 
झेन, सूफी एवं उपनिषद की कहानियों एवं बोधकथाओं पर पुणे में हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए सुबोधगम्य बीस प्रवचन| इस संकलन में जीवन और मृत्यु, सत्य और असत्य, अंधकार और प्रकाश जैसे जीवन और जगत के अनेक आयामों का प्रगाढ़ परिचय ओशो की वाणी द्वारा उपलब्ध है। बोध-कथाओं का मर्म तथा उनकी व्यावहारिक उपयोगिता को ओशो ने बहुत गहराई से समझाया है।
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पटना पुस्तक मेला 2014
नवंबर में पटना बिहार में में 11 दिन का विशाल पुस्तक मेला आयोजित हुआ जो सरकार द्वारा आयोजित किया गया था। दो लाख वर्ग फीट भूमि पर लगाये गए इस मेले में 250 प्रकाशकों और वितरकों के 630 स्टॉल्स थे। इनमें से दो स्टॉल्स ओशो ध्यान केंद्रों द्वारा लगाए गए थे। ओशो सेंटर फॉर इनर ग्रोथ के संचालक आनंद सुरेन्द्र द्वारा ओशो पुस्तकें और ऑडियो-वीडियो उपलब्ध कराये गए थे। उनके अनुसार ओशो स्टॉल पर 11 दिनों में लगभग 20,000 लोगों ने भेंट की उनमें से 70% प्रतिशत युवा और नए थे, उनकी आयु 18-25 साल थी। हिंदी किताबों में ध्यान की किताबं की बहुत मांग थी, उसके बाद बुद्ध और तंत्र की । नारी और क्रांति भी बहुत बिकी।

दूसरा स्टॉल दिल्ली से स्वामी दुर्गेश द्वारा लगाया गया था उनकी भी बहुत शानदार बिक्री हुई। पुस्तक मेले में डायमंड, हिंद और अन्य प्रकाशकों की दुकानें भी थीं जहां पर ओशो पुस्तकें उल्पलब्ध थीं। वे सभी पुस्तकें बिक गईं। आखिरी दिन तो लोग सारी बची-खुची पुस्तकें और सीडी खरीद रहे थे।
 
ओशो इंटरनैशनल मेडिटेशन रिज़ॉर्ट साक्षात्कार
प्रेम तारा, बेल्जियम
मैं एक जापानी कंपनी में बिज़नैस प्रशिक्षक के रूप में एक मशीन की तरह काम करती थी। उस कंपनी में मैं महज एक नंबर थी, कोई व्यक्ति नहीं। यहां ओशो इंटरनैशनल मेडिटेशन रिज़ॉर्ट में मैं वर्क एज़ मेडीटेशन लिविंग इन कार्यक्रम में भाग ले रही हूं। जो काम मैं यहां कर रही हूं वह बहुत संतोष दायक है। हम एक टीम की तरह काम करते हैं। हम सब मिलकर इस खूबसूरत जगह को सम्हालते हैं, बनाते हैं। सब मिलकर ध्यान करते हैं, काम करते हैं। यहां मेरा विकास हो रहा है, मैं जैसी हूं वैसी ही स्वीकृत हूं। हंसते-गाते दिन बीतते हैं। यहां काम करने की खास शैली है, हर काम त्वरा से और समग्रता से करना। चूंकि कोई मेरा मूल्यांकन नहीं करता मैं अधिक लचीली हो गई हूं।
अब बदलाव का विरोध नहीं करती। काम से साथ ध्यान भी करना कार्य के लिए गहरा सहारा है, इससे तनाव नहीं मालूम होता। मेरे लिए यह अनुभव एक खोज का अभियान है।
   
   
नवीन, इंग्लैण्ड
दोस्तों और परिवार के नजरिये से मैं प्रसन्न और सफल था। लेकिन मुझे लगता था मैं हद से ज्यादा तनाव में हूं और चूंकि सभी लोग डिप्रैशन में होते थे मैं सोचता था कि यह सामान्य स्थिति है और कुछ बेहतरीन शराब, कुछ थैरेपी या समस्याओं की उपेक्षा करने से मैं उनसे निजात पा सकूंगा। मेरी स्थिति का अहसास मुझे तब हुआ जब मैं अपना मकान बदल रहा था। मैंने इतना अधिक सामान इकट्ठा कर लिया था कि उसे देखकर मुझे पता चला कि मैं तथाकथित सुख की खोज में कितना समय और पैसा बरबाद कर रहा था। नहीं, कुछ बदलाव जरूरी था। इसीलिए मैं ओशो मेडिटेशन रिज़ॉर्ट आया। अब मैं कहूंगा कि यह ऐसी जगह है जहां हर किसी ने आना ही चाहिए।
मैं यहां पर पहुंचा तनाव से भरा, मोटा, अत्यधिक संवेदनशील, लेकिन पिछले छह महीनों में मैंने यह सीखा कि जीवन को गंभीरता से नहीं लेना है। अभी भी तनाव तो होता है लेकिन यहां मैंने जो ध्यान प्रयोग सीखे हैं उनके द्वारा पता चला है कि तनाव एक क्षणिक बात है।एक बात कहूं, समय यहां स्थिर नहीं होता, वह पीछे की ओर लौटता है। इंग्लैण्ड में मैं विरले ही नाचता हूं लेकिन यहां मैं इस प्रसन्नता से नाचता हूं जैसे मैं किशोर अवस्था में नाचता था। मैं सार्वजनिक रूप से गाने से डरता था कि लोग क्या कहेंगे। यहां मैं बिना किसी भय के गाता हूं , बस मुझे अच्छा लगता है इसलिए। खुश रहने का साइड इफैक्ट यह है कि शरीर भी बदलता है। मेरा 20 किलो वजन कम हो गया और मैं दस साल जवान अनुभव कर रहा हूं।
 
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