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इंटरनेशनल न्यूज़लेटर |
फरवरी, 2014 |
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विशिष्ट होने की आवश्यकता |
“वैसे ही बने रहने का तरीका है यह…यह मन की चालाकी है। बजाय इसके कि समझा जाये, ऊर्जा निंदा की ओर चलना प्रारंभ कर देती है…जबकि बदलाव समझ से आता है, निंदा से नहीं। तो मन अत्यंत चालाक है: जैसे ही तुम कोई सच्चाई देखना शुरू करते हो, मन इसपर हावी हो जाता है और निंदा करनी शुरू कर देता है। अब सपूर्ण ऊर्जा निंदा बन जाती है, समझ भूल जाती है, हट जाती है, और तुम्हारी ऊर्जा निंदा की ओर बहने लगती है…लेकिन निंदा सहायक नहीं होती…" |
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ध्वनि के बीचोबीच मौन की खोज |
“ध्वनि के केंद्र में स्नान करो, मानो किसी जलप्रपात की अखंड ध्वनि में स्नान कर रहे हो। या कानों में अंगुली डाल कर |
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नादों के नाद, अनाहत को सुनो।
इस विधि का प्रयोग कई ढंग से किया जा सकता है। एक ढंग यह है कि कहीं भी बैठ कर इसे शुरू कर दो। ध्वनियां तो सदा मौजूद हैं। चाहे बाजार हो या हिमालय की गुफा, ध्वनियां सब जगह हैं। चुप होकर बैठ जाओ।
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बोधि
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मैं मेक्सिको में पला, बढ़ा। वहां पर मैं एक कलाकार हूं, और अनुवादक का काम करता हूं। मैं एक बॉडी वर्कर भी हूं। मैं ओशो इंटरनैशनल मेडिटेशन रिज़ार्ट में पहली बार सात साल पहले आया था। |
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मुझे आज भी याद है वह दिन जब मैं सुबह-सुबह वैल्कम सेंटर बैठा था रजिस्ट्रेशन का इंतजार करते हुए। इस जगह की अभूतपूर्व सुंदरता से अभिभूत, चारों तरफ की हरियाली, घने पेड़ जिन पर सूरज की पहली किरणें रोशनी बरसा रही थीं। मानो मैं सपनों की दुनिया में प्रवेश कर रहा हूं। यहां का जो वातावरण है उसके लिए मैं मानसिक रूप से तैयार नहीं था।… |
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प्रेम मांगो मत, देते रहो। |
“मैं आपको एक सूत्र की बात कहूं: जिस मनुष्य के पास प्रेम है उसकी प्रेम की मांग मिट जाती है। और यह भी मैं आपको कहूं: |
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जिसकी प्रेम की मांग मिट जाती है वही केवल प्रेम को दे सकता है। जो खुद मांग रहा है वह दे नहीं सकता है। इस जगत में केवल वे लोग प्रेम दे सकते हैं जिन्हें आपके प्रेम की कोई अपेक्षा नहीं है
इस जगत में केवल वे लोग प्रेम दे सकते हैं जिन्हें आपके प्रेम की कोई अपेक्षा नहीं है—केवल वे ही लोग! महावीर और बुद्ध इस जगत को प्रेम देते हैं।
…" |
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शरीर के बीज कोष |
“अगर हम अपने शरीर में पीछे लौंटें तो प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में इस जगत का पूरा इतिहास छिपा है। यह जगत पहले दिन बना होगा, उस दिन भी आपके शरीर का कुछ हिस्सा मौजूद था; वही विकसित होते आपका शरीर हुआ है। एक छोटे से बीज-कोष में इस अस्तित्व |
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की सारी कथा छिपी है; वह आपका नहीं है, उसकी लंबी परंपरा है। वह बीज-कोष न मालूम कितने मनुष्यों से, न मालूम कितने पशुओं से, न मालूम कितने पौधों से, न मालूम कितने खनिजों से यात्रा करता हुआ आप तक आया है…" |
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हमारे वर्तमान बेस्ट सेलर्स |
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गीता-दर्शन भाग आठ - Gita Darshan, Vol.8 |
श्रीमदभगवदगीता के अध्याय सत्रह ‘श्रद्धात्रय-विभाग-योग’ एवं अध्याय अठारह ‘मोक्ष-संन्यास-योग’ पर पुणे में प्रश्नोत्तर सहित हुई प्रवचनमाला के अंतर्गत ओशो द्वारा दिए गए बत्तीस प्रवचन |
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"मनुष्य-जाति के इतिहास में उस परम निगूढ़ तत्व के संबंध में जितने भी तर्क हो सकते हैं, सब अर्जुन ने उठाए। और शाश्वत में लीन हो गए व्यक्ति से जितने उत्तर आ सकते हैं, वे सभी कृष्ण ने दिए। इसलिए गीता अनूठी है। वह सार-संचय है; वह सारी मनुष्य की जिज्ञासा, खोज, उपलब्धि, सभी का नवनीत है…" |
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फरवरी 2014 इंटरनेशनल न्यूज़लेटर |
ओशो इंटरनेशनल
410 पार्क एवेन्यू, 15 वीं मंजिल, न्यूयॉर्क, एनवाई 10022 |
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