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न्यूज़लैटर
फरवरी, 2018
 
 
ध्यान 101
गूगल पर ध्यान शब्द की खोज करें तो दो सौ चौबीस मिलियन से अधिक संदर्भ मिलते हैं। हमारे आसपास की दुनिया इतनी विक्षिप्त हुई जा रही है कि उसे ठीक करने की चिंता हर एक को सताई जा रही है। शायद इसी वजह से ध्यान और योग की विधियां इतनी लोकप्रिय हो रही हैं। इस महीने हम उसी के बारे में चर्चा कर रहे हैं।
" तो ध्यान क्या है? ध्यान है अपने होने में ही आनंदित होना। वह बिलकुल सरल है। चेतना की अत्यंत शिथिल स्थिति जहां आप कुछ भी नहीं कर रहे हैं। जैसे ही करना आता है, तुम तनाव पूर्ण हो जाते हो, तत्क्षण चिंता प्रवेश कर जाती है: कैसे करें? क्या करें? कैसे सफल हों? असफल कैसे न हों? आप भविष्य में चले गए।"
ओशो, डैंग डैंग डोको डैंग #5
 
     
     
 
ध्यानयोग: प्रथम और अंतिम मुक्ति
"और अब दुनिया में वर्षों और जन्मों तक चलने वाले योग नहीं टिक सकते। अब लोगों के पास दिन और घंटे भी नहीं हैं। और अब ऐसी प्रक्रिया चाहिए जो तत्काल फलदायी मालूम होने लगे; एक आदमी अगर सात दिन का संकल्प कर ले, तो फिर सात दिन में ही उसे पता चल जाए कि हुआ है बहुत कुछ, वह आदमी दूसरा हो गया है। अगर सात जन्मों में पता चले, तो अब कोई प्रयोग नहीं करेगा।
पुराने दावे जन्मों के थे। वे कहते थे: इस जन्म में करो, अगले जन्म में फल मिलेंगे। वे बड़े प्रतीक्षापूर्ण धैर्यवान लोग थे। वे अगले जन्म की प्रतीक्षा में इस जन्म में भी साधना करते थे। अब कोई नहीं मिलेगा। फल आज न मिलता हो तो कल तक के लिए प्रतीक्षा करने की तैयारी नहीं है। ...इसलिए, मैं कह रहा हूं, आज प्रयोग हो और आज परिणाम होना चाहिए।’’ —ओशो
 
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माह का ध्यान
 
"अगर तुम अतीत से मुक्त हो गए और ऐसे देखने लगे जैसे वर्तमान को देख रहे हो तो तुम अस्तित्व में प्रवेश कर जाओगे। और यह प्रवेश दोहरा होगा: तुम हर चीज में प्रवेश कर जाओगे, उसकी आत्मा में, और स्वयं में भी प्रवेश करोगे क्योंकि वर्तमान द्वार है। सारे ध्यान किसी न किसी तरह तुम्हें वर्तमान में जीने के लिए प्रेरित करते हैं। तो यह विधि बहुत सुंदर विधियों में से एक है, और सरल है।" ओशो
 
     
 
माह का आलेख
 
क्रोध से ही उपजे करुणा
जब भी कोई व्यक्ति अपनी स्थिति को स्वीकार नहीं कर पाता, तभी क्रोध उत्पन्न होना शुरू हो जाता है। अगर तुम्हारे जीवन में क्रोध जलता हो, जगह-जगह निकल आता हो तो इसका अर्थ यही है कि तुम एक बुझी हुई लालटेन लिये हुए चल रहे हो। सोचते हो कि प्रकाश हाथ में है इसलिये कोई टकरायेगा नहीं; लेकिन टकराहट होती है।
 
     
     
 
 
     
     
   
     
 
 
 
     
     
 
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