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जनवरी, 2015
 
 
 
कैवल्य उपनिषद
"कैवल्य उपनिषद एक आकांक्षा है, परम स्वतंत्रता की। कैवल्य का अर्थ है: ऐसा क्षण आ जाए चेतना में, जब मैं पूर्णतया अकेला रह जाऊं, लेकिन मुझे अकेलापन न लगे। एकाकी हो जाऊं, फिर भी मुझे दूसरे की अनुपस्थिति पता न चले। अकेला ही बचूं, तो भी ऐसा पूर्ण हो जाऊं कि दूसरा मुझे पूरा करे, इसकी पीड़ा न रहे। कैवल्य का अर्थ है: केवल मात्र मैं ही रह जाऊं। लेकिन इस भांति हो जाऊं कि मेरे होने में ही सब समा जाए। मेरा होना ही पूर्ण हो जाए। अभीप्सा है यह मनुष्य की, गहनतम प्राणों में छिपी।

सारा दुख सीमाओं का दुख है। सारा दुख बंधन का दुख है। सारा दुख--मैं पूरा नहीं हूं, अधूरा हूं। और मुझे पूरा होने के लिए न मालूम कितनी-कितनी चीजों की जरूरत है। और सब चीजें मिल जाती हैं तो भी मैं पूरा नहीं हो पाता हूं; मेरा अधूरापन कायम रहता है। सब-कुछ मिल जाए, तो भी मैं अधूरा ही रह जाता हूं।
 
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माह का ध्यान
शब्दों के बिना देखना
छोटी-छोटी चीजों में प्रयोग करें कि मन बीच में न आए। आप एक फूल को देखते हैं--तब आप सिर्फ देखें। मत कहें 'सुंदर', 'असुंदर'। कुछ मत कहें। शब्दों को बीच में मत लाएं, कोई शब्द उपयोग न करें। सिर्फ देखें। मन बड़ा व्याकुल, बड़ा बेचैन हो जाएगा। मन चाहेगा कुछ कहना। आप मन को कह दें: 'शांत रहो, मुझे देखने दो, मैं सिर्फ देखूंगा।'

शुरुआत में कठिनाई आएगी, लेकिन ऐसी चीजों से शुरू करें जिनसे आप ज्यादा जुड़े नहीं हैं। बिना शब्दों को बीच में लाए पत्नी को देखना कठिन होगा। आप पत्नी से बहुत जुड़े हुए हैं, बहुत ही भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं। क्रोध में या प्रेम में--लेकिन आप बहुत जुड़े हुए हैं।

तो ऐसी चीजों को देखें जो तटस्थ हैं--चट्टान, फूल, वृक्ष, सूर्योदय, उड़ता हुआ पक्षी, आकाश में घूमता हुआ बादल। सिर्फ ऐसी चीजों को देखें जिनसे आप ज्यादा जुड़े हुए नहीं हैं, जिनके प्रति आप अनासक्त रह सकें, जिनके प्रति आप तटस्थ रह सकें। तटस्थ चीजों से शुरू करें और फिर भावुक स्थितियों की ओर बढ़ें।
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ओशो ग्लिम्प्स मुंबई- एक सुंदर प्रयास
मुंबई स्थित अल्टामाउन्ट रोड के समृद्ध हिस्से में हाल ही में ओशो ग्लिम्प्स पुस्तक केंद्र खुला है। मुंबई में ऐसे स्थान की जरूरत महसूस हो रही थी कि आसानी से ओशो की पुस्तकें और ऑडियो वीडियो मिल जाएं। केम्प्स कॉर्नर के पास संगीता काठीवाडा का शानदार बुटीक है मेलांज, उसी के बगल में यह नया केंद्र खुला है। स्वयं संगीता ओशो से प्रभावित हैं और मानती हैं कि उनके जीवन में ओशो का अनुसरण करने से काफी परिवर्तन हुआ है। इसलिए उन्होंने सहर्ष अपने घर का एक कक्ष ओशो को उपलब्ध कराने के लिए मुहैया कराया। ओशो शैली के अनुसार बाहर से काला और भीतर से सफेद रंग के कमरे में सुंदर साज सज्जा के साथ ओशो साहित्य सजाकर रखा हुआ है। राह से गुज़रते लोग ओशो का मानचित्र देखकर भीतर आते हैं और कुछ एक किताबों को खरीदते भी हैं।

पता -
ओशो ग्लिम्प्स
अल्टामाउंट रोड
केम्प्स कॉर्नर
मुंबई 400026
ईमेल oshoglimpse@osho.net
मोबाइल 9820065123
 
 
 
 
ओशो इंटरनैशनल मेडिटेशन रिज़ॉर्ट साक्षात्कार
गैविन झरतुस्त्र, तैवान
यदि आप किसी बात से भागना चाहते हैं तो ओशो इंटरनैशनल मेडिटेशन रिज़ॉर्ट मत आइए। यह ऐसी जगह है जहां आपको स्वयं का सामना करना पड़ता है क्योंकि यह स्थान एक विराट आईना है। हर व्यक्ति, आपका हर कृत्य आपको प्रतिबिंबित करता है। मनोविज्ञान में स्नातक बनने के बाद मैं तैवान के समाज से भागना चाहता था। उनका रवैया यह होता है कि सिर्फ पैसे के लिए पैसा कमाया जाए, उसके अधिक कुछ नहीं। कोई उच्चतर मूल्य नहीं हैं उनके। मैंने ओशो की एक किताब पढ़ी और उससे प्रभावित होकर पुणे चला आया। यहां पर मैंने पाया कि जीवन बहुत सघन है, बहुत जीवंत और तरंगायित। इतने सारे कोर्सेस हैं जिनके द्वारा मैंने अपने मुखौटे देखे और फिर गिरा दिए, सीखने को इतने
कौशल हैं कि मज़ाआता है। मैं सतत खुद को बदलने की कोशिश कर रहा हूं। कितना बोझ उतर गया, कहना मुश्किल है। जीवन का आनंद लेना सीख गया हूं।"
   
   
देव मायो, हॉलैंड
देव मायो हॉलैंड में फ्रैण्ड्स ऑफ ओशो समूह की सदस्य हैं और उनके पास हेग शहर स्थित रॉयल लाइब्रैरी में ओशो की संपूर्ण किताबें हैं। यह समूह साल में चार बार समूचे हॉलैंड में ओशो उत्सव आयोजित करता है। मायो पुणे के मेडिटेशन रिज़ॉर्ट में 25 साल बाद आईं और यहां का परिवर्तन देखकर अभिभूत हो गईं। वे कहती हैं, " यहां पूरी तरह ओशो की झलक मिलती है। यहां का सौंदर्य, तालमेल, मौन, सफाई और संपूर्ण सुरक्षा अद्भुत है। यहां मैं स्वयं होने के लिए स्वतंत्र हूं और यहां परम शांति है। जोरबा दि बुद्ध और मीरा ये दो रेस्तरां तो पूरी दुनिया में अनुकरणीय हैं। इतने प्रकार के व्यंजन, इतने स्वच्छ और स्वादिष्ट, और सबसे निराली है यहां की वाउचर पद्धति। गंदे नोटों को छूने की जरूरत नहीं है। काश विश्व के अन्य लोग भी इसका अनुसरण करते।"
 
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पुरस्कार प्राप्त ओशो ज़ेन टैरो
परंपरागत टैरो का रवैया होता है भूत और भविष्य के बारे में जानना, लेकिन ओशो ज़ेन टैरो हमारा ध्यान उस अवचेतन मन पर केंद्रित करता है जो अभी और यहीं होता है। यह प्रणालि ज़ेन प्रज्ञा पर आधारित है। यह प्रज्ञा कहती है कि बाहर जो घटनाएं घटती हैं वे सिर्फ हमारे भीतर के विचार और.…
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दैनिक जागरण-, ओशो के जन्मदिवस: दुख से सुख की ओर...
जब हमें यह बोध हो जाता है कि अपनी स्थिति के लिए हम ही जिम्मेदार हैं, दूसरा कोई नहीं, उस क्षण हमारे अंदर क्रांति आती है। हमारा रूपांतरण हो जाता है- दुख से सुख की ओर...
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