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न्यूज़लैटर
जुलाई, 2017
 
     
 
भय
प्रश्न: ऐसा प्रतीत होता है जैसे भय पैदा करने के लिए राजनेता और समाचार मीडिया लगातार कुछ न कुछ हेरा-फेरी करने में लगे रहते हैं। उदाहरण के तौर पर, मुझे बस अभी-अभी ही पता चला है कि किसी प्रकार के आतंकवाद की बजाय अमरीका में मेरे भोजन के कारण दम घुटने से मरने की ज्यादा संभावना है। इस सब के पीछे क्या है?
ओशो: चूंकि भय स्वतंत्रता के विपरीत है इसलिए अब तक जिनके भी संपर्क में तुम आए हो वे तुम पर भय थोपते आए हैं। जितना ज्यादा भय तुम्हारे भीतर है, स्वतंत्रता की संभावना भी उतनी ही कम हो जाती है। जितना ज्यादा भय, उतनी ही विद्रोह करने की संभावना कम हो जाती है।
“सभी समाज, चर्च और राज्य, चाहते हैं कि लोग उस स्थिति में रहें जहां निरंतर भय व्याप्त हो: परिचित का भय, अपरिचित का भय, मृत्यु का भय, नर्क का भय, स्वर्ग न पा सकने का भय, संसार में अपना नाम न कमा पाने का भय, यह भय कि तुम न-कुछ न रह जाओ। जन्म की शुरुआत से ही तुम्हारे आस-पास के लोग किसी न किसी बात को लेकर भय खड़ा कर देते हैं। संसार में कोई भी बच्चा भय के साथ जन्म नहीं लेता। प्रत्येक बच्चा सभी महान गुण लेकर पैदा होता है—स्वतंत्रता, संदेह, विद्रोह, निजता, निर्दोष भाव। लेकिन वह असहाय और दूसरों पर निर्भर होता है।
ओशो दि लास्ट टेस्टामेंट, वोल.3, टॉक#23
 
     
     
 
जीवन संगीत
"जो वीणा से संगीत के पैदा होने का नियम है, वही जीवन-वीणा से संगीत पैदा होने का नियम भी है। जीवन-वीणा की भी एक ऐसी अवस्था है, जब न तो उत्तेजना इस तरफ होती है, न उस तरफ। न खिंचाव इस तरफ होता है, न उस तरफ। और तार मध्य में होते हैं। तब न दुख होता है, न सुख होता है। क्योंकि सुख एक खिंचाव है, दुख एक खिंचाव है। और तार जीवन के मध्य में होते हैं--सुख और दुख दोनों के पार होते हैं। वहीं वह जाना जाता है जो आत्मा है, जो जीवन है, जो आनंद है।
आत्मा तो निश्चित ही दोनों के अतीत है। और जब तक हम दोनों के अतीत आंख को नहीं ले जाते, तब तक आत्मा का हमें कोई अनुभव नहीं होगा।" - ओशो
 
Book
 
     
     
 
ओशो इंटरनैशनल मेडिटेशन रिज़ार्ट साक्षात्कार
 
क्रीना ब्रैलोनू - रोमानिया - फैशन इंडस्ट्री
ओशो बार्न अगैन मेडिटेटिव थैरेपी, एक हफ्ते का कोर्स है जो ओशो मल्टीवर्सिटी की ओर से दिया जाता है। इसमें शामिल होकर मुझे अपने आपसे मुलाकात करने का अवसर मिला। महज सरल शिशुवत होने की क्रियाओं द्वारा मुझे अपने पुराने ढांचे, भावों को पुन: जीने और बचपन में मेरी जो आदतें बनी थीं उन्हें जानने का अवसर मिला। यह भी जाना कि इन्हें खुद मैंने ही बनाया था और कि बाद में मेरे जीवन पर किस तरह इनका असर हुआ था।
 
     
     
 
माह का ध्यान
 
"नकारात्मक भाव भी अच्छे हैं अगर सच्चे हों तो। और अगर वे सच्चे हैं तो धीरे-धीरे वे अधिक से अधिक सकारात्मक होते जाते हैं। और एक घड़ी आती है जब सकारात्मकता और नकारात्मकता सब विदा हो जाती है। तुम सिर्फ प्रामाणिक रह जाते हो।"
 
     
     
 
माह का आलेख
 
भय प्रेम का अभाव है
मनुष्य-जाति भय से, चिंता से, दुख और पीड़ा से आक्रांत है, और पांच हजार वर्षों से--आज ही नहीं। जब आज ऐसी बात कही जाती है कि मनुष्यता आज भय से, चिंता से, तनाव से, अशांति से भर गई है, तो ऐसा भ्रम पैदा होता है जैसे पहले लोग शांत थे, आनंदित थे।
 
     
     
 
OSHO Monsoon Music and Meditation Festival Invitation 2017
 
     
     
 
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