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ओशो ऑडिटोरियम के विशाल पिरामिड में ध्यान करने का अनुभव अभूतपूर्व है, और खासकर तब जब वर्षा की बूंदें उसके शीशे पर बरस रही हों। ओशो मेडिटेशन एण्ड म्युज़िक फेस्टिवल विश्व भर के लोगों को ओशो इंटरनैशनल मेडिटेशन रिज़ार्ट पुणे में आकर्षित करता है जहां रातें नृत्य, गीत, संगीत के सृजनात्मक कार्यक्रमों का सरताज पहनती हैं और दिन भीगी हरियाली में ध्यान, उत्सव और मस्ती में डूबते हैं। कतिपय प्रसिद्ध गायक, नर्तक और अभिनेता यहां आकर हाजिरी लगा रहे हैं। तो अपनी टिकट आज ही बुक करें। |
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अधिक जानकारी के लिए http://www.osho.com/visit/events/festival |
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स्वतंत्रता वास्तव में है क्या? |
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स्वतंत्रता एक भारी भरकम शब्द है। जब यह मिलती है या छीन ली जाती है भावनाओं की बाढ़ सी आ जाती है। लोग इससे लड़ते हैं, इसके लिए अपनी जान दे देते हैं... क्या हम समझते भी हैं कि यह क्या है? क्या आप इसे समझाएंगे? |
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स्वतंत्रता तीन प्रकार की हो सकती है, और उन तीनो ही प्रकार की स्वतंत्रताओं को अच्छे से समझना होगा। पहली है ‘किसी बात से स्वतंत्रता’, दूसरी है ‘किसी बात के लिए स्वतंत्रता’ और तीसरी है बस ‘स्वतंत्रता’ अपने सहज स्वरुप में—न तो ‘किसी बात से’ और न ही ‘किसी बात के लिए।‘ पहली स्वतंत्रता जो कि ‘किसी बात से’ होती है एक प्रक्रिया है। वह अतीत-उन्मुख है; इसमें तुम अतीत के विरुद्ध लड़ रहे हो, तुम उससे छुटकारा पाना चाहते हो, तुम उससे आविष्ट हो। |
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“मनोविश्लेषण तुम्हें यह स्वतंत्रता देने का प्रयास करता है, ‘किसी बात से’ स्वतंत्रता—अतीत के दुखों से, बचपन में मिले घावों से। प्राइमल थेरेपी मूलतः अतीत पर आधारित है। तुम्हें अतीत से मुक्त होने के लिए पीछे लौटना होगा, तुम्हें अपने जन्म के समय की चीख तक जाना होगा, तब तुम स्वतंत्र होगे। तो प्राइमल थेरेपी, मनोविश्लेषण, और दूसरी थेरेपियों के लिए स्वतंत्रता का अर्थ है कि तुम्हें अतीत को गिरा देना होगा। तुम्हें उससे लड़ना होगा, तुम्हें किसी तरह से अतीत की उलझनों से निकलना होगा; तब तुम स्वतंत्र होओगे। |
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ओशो दि बुक ऑफ़ विजडम #25 |
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एक ओंकार सतनाम |
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"नानक ने परमात्मा को गा-गाकर पाया। गीतों से पटा है मार्ग नानक का। इसलिए नानक की खोज बड़ी भिन्न है। नानक ने योग नहीं किया, तप नहीं किया, ध्यान नहीं किया। नानक ने सिर्फ गाया। और गाकर ही पा लिया। लेकिन गाया उन्होंने इतने पूरे प्राण से कि गीत ही ध्यान हो गया, गीत ही योग बन गया, गीत ही तप हो गया।"—ओशो |
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माह का ध्यान |
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वह निर्णय सही होता है जो जीवन के अनुभव से आता है, जो केवल मस्तिष्क से आता है वह गलत होता है । और जो मात्र मस्तिष्क से आता है वह कभी निर्णायक नहीं होता, वह हमेशा परस्पर विरोधी होता है। विकल्प खुला होता है और विचार चलते रहते है, कभी यह कभी वह। इस तरह मन संघर्ष पैदा करता है। |
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माह का आलेख |
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पूरब को विज्ञान चाहिए, पश्चिम को धर्म चाहिए |
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पूरब ने कोशिश की है एक पंख से उड़ने की, और बुरी तरह गिरा। और पश्चिम ने कोशिश की है एक पंख से उड़ने की, बुरी तरह गिरा। दोनों यूं तो दिखाई पड़ते हैं बड़े विपरीत हैं, मगर एक बात में दोनों राजी हैं कि एक ही पंख से उड़ना है। इस जिद ने सारी मनुष्यता को दुख से भर दिया है। |
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जून, 2017 Newsletter |
OSHO International
Waterfront Business Centre, No 5, Lapps Key, Cork, Ireland |
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