If you cannot view this page, please click here |
|
|
|
|
|
|
|
|
आत्म विकास का मिथक |
|
इस ग्रह पर मानव ही एकमात्र ऐसी प्रजाति है जो निरंतर स्वयं को बेहतर बनाने के प्रयास में लगी रहती है, स्वयं को बदलने के प्रयास में. बाकी सभी इस बात में खुश हैं कि वे कौन हैं और कैसे हैं. तो हम इंसान ही ऐसा क्यों करते हैं? क्या एक बेहतर व्यक्ति बनने की इच्छा रखना गलत है? |
|
“सबसे पहले, स्वयं को बेहतर बनाने के सभी प्रयास विफल होने के लिए बाध्य हैं क्योंकि जो यह प्रयास कर रहा है वह स्वयं ही समस्या है: वह है अहंकार। अहंकार निरंतर बेहतर होने का प्रयास करता है: वह कहता है और धन कमाओ, और बड़ा घर बनाओ, और बड़ी कार खरीदो, और सुन्दर स्त्री या पुरुष ढूंढो, यह पा लो, वह पा लो। यह अहंकार है। तुम इसे समझो। |
|
“लेकिन फिर अहंकार एक और खेल भी खेलता है: वह कहता है, ‘और शांतिपूर्ण हो जाओ, और प्रेमपूर्ण हो जाओ, ध्यान करो सिद्ध हो जाओ, बुद्ध के जैसे हो जाओ।’ यह फिर से वही खेल है, उल्टी दिशा में जाता हुआ। वही अहंकार जो स्वयं को बाहरी वस्तुओं से सजाने संवारने की चेष्टा में लगा था अब भीतर की वस्तुओं से सजाना चाहता है। |
|
ओशो द पाथ ऑफ़ लव, टॉक #10 |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
आंखों देखी सांच |
|
एक ज्ञान बाहर है, एक प्रकाश बाहर है। अगर आपको गणित सीखनी है, केमिस्ट्री सीखनी है, फिजिक्स सीखनी है, इंजीनियरिंग सीखनी है, तो आप किसी स्कूल में भरती होंगे, किताब पढ़ेंगे, परीक्षाएं होंगी और सीख लेंगे। यह लर्निंग है; नॉलेज नहीं। यह सीखना है; ज्ञान नहीं। विज्ञान सीखा जाता है, विज्ञान का कोई ज्ञान नहीं होता। लेकिन धर्म सीखा नहीं जाता, उसका ज्ञान होता है। उसकी लर्निंग नहीं होती, उसकी नॉलेज होती है। एक प्रकाश बाहर है, जिसे सीखना होता है; एक प्रकाश भीतर है, जिसे उघाड़ना होता है, जिसे डिस्कवर करना होता है। ओशो |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
ओशो इंटरनैशनल मेडिटेशन रिज़ार्ट साक्षात्कार |
|
|
पूर्णिमो |
|
नादब्रह्म मेरा पसंदीदा ध्यान है। |
|
मैं इसे दोपहर या शाम में करना अधिक पसंद करती हूं, जब दिन का सबसे सक्रिय हिस्सा समाप्त हो चुका होता है। |
|
खास तौर पर यह ध्यान मुझे इसलिए पसंद है, क्योंकि यह मुझे गहरे मौन में ले आता है, एक भीतरी शांति में। |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
माह का ध्यान |
|
|
जीवन को नकार से नहीं जिया जा सकता, और जो जीवन को नकार से जीने का प्रयत्न करते हैं वे जीवन को केवल गंवा देते हैं। आप नकार को अपना आशियाना नहीं बना सकते क्योंकि नकार पूरी तरह खाली है। नकार अंधेरे की तरह है। अंधेरे का कोई वास्तविक अस्तित्व नहीं होता; यह केवल प्रकाश की अनुपस्थिति है। इसलिए आप सीधे-सीधे अंधेरे के साथ कुछ नहीं कर सकते। आप इसे कमरे से बाहर धकेल नहीं सकते, आप इसे पड़ोसी के घर में नहीं फेंक सकते; और आप अपने घर में और अधिक अंधेरा नहीं ला सकते। अंधेरे के साथ सीधे कुछ नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह नहीं है। यदि आप अंधेरे के साथ कुछ करना चाहते हैं, तो प्रकाश को बुझा दें; यदि आप अंधेरा नहीं चाहते, प्रकाश को जला दें। लेकिन जो कुछ भी आपको करना है वह प्रकाश के साथ करना है।' |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
माह का आलेख |
|
|
|
विश्रांत होना सरल है |
|
हम सब जानते हैं, बहुत थक जाने पर नींद न आना कैसा होता है। जीवन हर दिन तेज और तेज गति करता प्रतीत होता है, और यह ऐसा है जैसे हमें बस एक ही स्थान पर रहने के लिए दौड़ते रहना पड़ेगा। वर्तमान समय में, विश्रांति किन्ही छुट्टियों पर जाने या फिर सप्ताह भर में एकाध बार मैडिटेशन क्लास में भाग लेने तक सीमित है, लेकिन कैसा रहे यदि हम श्वासों के आने-जाने जैसी सरलता से विश्रांति में डूब जाएं? |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
ताज़ा खबरें |
|
|
|
|
आंसुओं में बह जाती है सारी उदासी |
|
मनो वैज्ञानिक कहते है की बच्चे के रोने की जो कला है, वह उसके तनाव से मुक्त होने की व्यवस्था है और बच्चे पर बहुत ज्यादा तनाव है| |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
मे, 2017 Newsletter |
OSHO International
Waterfront Business Centre, No 5, Lapps Key, Cork, Ireland |
आप एक दोस्त के लिए यह ईमेल भेजना चाहेंगे? |
|
|
|
|