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इंटरनेशनल न्यूज़लेटर
नवम्बर 2013
 
मुख्य आलेख – ईर्ष्या इतनी पीड़ा क्यों देती है?
माह का ध्यान – हास्य और रिलैक्सेशन
बॉडी धर्म – संपूर्ण मनुष्य
इमोशनल इकोलॉजी – आदर्शों को त्यागना
साक्षात्कार – बाशो
 
ईर्ष्या इतनी पीड़ा क्यों देती है?
ओशो,
ईर्ष्या इतनी पीड़ा क्यों देती है?


ईर्ष्या तुलना है। और हमें तुलना करना सिखाया गया है, हमनें तुलना करना सीख लिया है, हमेशा तुलना करते हैं। किसी और के पास ज्यादा अच्छा मकान है, किसी और के पास ज्यादा सुंदर शरीर है, किसी और के पास अधिक पैसा है, किसी और के पास करिश्माई व्यक्तित्व है। जो भी तुम्हारे आस-पास से गुजरता है उससे अपनी तुलना करते रहो, जिसका परिणाम होगा, बहुत अधिक ईर्ष्या की उत्पत्ति; यह ईर्ष्या तुलनात्मक जीवन जीने का बाइ प्रोडक्ट है…"
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हास्य और रिलैक्सेशन
कुछ क्षण ऐसे होते हैं , जब अनजाने आप लेट-गो की स्थिति में होते हैं। उदाहरण के लिए, जब आप वास्तव में
हंस रहे हैं, पेट में बल पड़ने वाली हंसी, सिर्फ मस्तिष्क से नहीं, लेकिन पेट से, आप बिना जाने ही रिलैक्सड होते हैं, आप लेट-गो में हो जाते हैं। इसीलिए हंसी इतना स्वास्थ्य देती है। कोई और दूसरी दवाई नहीं है जो कि आपका स्वास्थ बनाने में इतना मदद करती है। अगली बार आप हंसे तो सतर्क रहकर देखें कि आप कितने रिलैक्सड हैं…"
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बाशो
मैं ज्यादातर कोस्टा रिका में अपने नाना-नानी के साथ रह कर बड़ा हुआ, क्योंकि मेरे माता-पिता तलाकशुदा थे और मेरी मां बहुत ज्यादा काम करती
थी। मेरे नाना-नानी अच्छे दिल के इंसान थे, और प्रकृति को प्रेम करते थे। बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई पूरा करनसे थोड़ा पहले छुट्टियों में मैं कोस्टा रिका गया था, और मेरी मां ने मुझे एक ओशो की क।िताब दी थी
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आदर्शों को त्यागना
ओशो
क्या कायरता और पाखंड भी सुंदर हो सकते हैं?
यदि तुम साहसी व्यक्ति होने का विचार रखते हो तब कायर होना बुरा दिखता है। लेकिन कायरता एक वास्तविकता है, और आदर्श सिर्फ आदर्श, मन की एक कल्पना। "वास्तविकता के लिए कल्पनाओं का बलिदान करो, सभी आदर्शों को छोड़ दो, और तब जीवन संघटित होना शुरू हो जाएगा। सभी अस्वीकार कर दिए गए भाव वापस आना शुरू कर देंगे, जो दमित है वह उभरना शुरू होगा। तुम पहली बार एक किस्म की निकटता महसूस करना शुरू करोगे; अब तुम बिखरोगे नहीं…"
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संपूर्ण मनुष्य
एक मनुष्य को बस मनुष्य होना चाहिए, एक मनुष्य को बस मानवीय होना चाहिए, समग्र, अखंड। और उस
अखंडता से एक नए किस्म के स्वास्थ्य का उदय होगा।

पूरब अंतर्मुखी है, पश्चिम बहिर्मुखी है। मनुष्य विभाजित है, मन विखंडित है। इसी कारण सारे महान गुरू पूरब से आते हैं, और सारे महान वैज्ञानिक पश्चिम से आते हैं। पश्चिम ने विज्ञान विकसित किया है और अन्दर की आत्मा को पूरी तरह से भुला दिया है; वह पदार्थ की चिन्ता लेता रहा, लेकिन अन्दर की आत्मपरकता से अनजान बना रहा। सारा ध्यान पदार्थ पर है…"
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ओशो इंटरनॅशनल फाउंडेशन विश्व भर में लोगों को जागरूक करने के प्रशंसनीय कार्य के लिए लायन्स क्लब इंटरनॅशनल, मुंबई  द्वारा सन्मानित
ओशो परिवर्तन टैरो विमोचन
पुरस्कार प्राप्त ओशो ज़ेन टैरो
 
ज्योतिष विज्ञान
 
एक, जिसे हम कहें अनिवार्य, एसेंशियल, जिसमें रत्ती भर फर्क नहीं होता। वही सर्वाधिक कठिन है उसे जानना। फिर उसके बाहर की परिधि है: नॉन-एसेंशियल, जिसमें सब परिवर्तन हो सकते हैं। मगर हम उसी को जानने को उत्सुक होते हैं। और उन दोनों के
बीच में एक परिधि है--सेमी-एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य, जिसमें जानने से परिवर्तन हो सकते हैं, न जानने से कभी परिवर्तन नहीं होंगे। तीन हिस्से कर लें। एसेंशियल, जो बिलकुल गहरा है, अनिवार्य, जिसमें कोई अंतर नहीं हो सकता। उसे जानने के बाद उसके साथ सहयोग करने के सिवाय कोई उपाय नहीं है। धर्मों ने इस अनिवार्य तथ्य की खोज के लिए ही ज्योतिष की ईजाद की, उस तरफ गए। उसके बाद दूसरा हिस्सा है: सेमी-एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य। अगर जान लेंगे तो बदल सकते हैं, अगर नहीं जानेंगे तो नहीं बदल पाएंगे। अज्ञान रहेगा, तो जो होना है वही होगा। ज्ञान होगा, तो ऑल्टरनेटिव्स हैं, विकल्प हैं, बदलाहट हो सकती है। और तीसरा सबसे ऊपर का सरफेस, वह है: नॉन-एसेंशियल। उसमें कुछ भी जरूरी नहीं है। सब सांयोगिक है।
 
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विडियो लरिसा जर्किएवित्ज़

 
 
 
 
 
 
           
 
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