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ऑनलाइन संस्करण । सदस्यता लें । किसी मित्र को भेजें । OSHO.com दौरा
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इंटरनेशनल न्यूज़लेटर |
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स्वार्थ शब्द बहुत सुंदर है |
“स्वार्थ शब्द का अर्थ समझते हो? शब्द बड़ा प्यारा है, लेकिन गलत हाथों में पड़ गया है। स्वार्थ का अर्थ होता है--आत्मार्थ। अपना सुख, स्व का अर्थ। तो मैं तो स्वार्थ शब्द में कोई बुराई नहीं देखता। मैं तो बिलकुल पक्ष में हूं। मैं तो कहता हूं, धर्म का अर्थ ही स्वार्थ है। क्योंकि धर्म का अर्थ स्वभाव है…" |
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निर्णय लेना |
“वह निर्णय सही होता है जो जीवन के अनुभव से आता है, जो केवल मस्तिष्क से आता है वह गलत होता है । और जो
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अपने बमात्र मस्तिष्क से आता है वह कभी निर्णायक नहीं होता, वह हमेशा परस्पर विरोधी होता है। विकल्प खुला होता है और विचार चलते रहते हैं – कभी यह, कभी वह। इस तरह मन संघर्ष पैदा करता है…" |
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विवेक विदा |
मुझे ईरानी मां ने कनाडा में पाल-पोस कर बड़ा किया और मैं टोरंटो में एक आर्ट डीलर और क्यूरेटर के रूप में काम कर रही थी। पांच साल की उम्र में मैंने ऑइल पेंटिंग बनाना शुरू किया, और |
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अपने काम को पूरी भावना से प्रेम करती थी क्योंकि रचनात्मकता और कला ये दो बातें मुझे प्रेरित करती है… |
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प्रसन्न रहें |
“प्रमुदिता का अर्थ है कि हम प्रसन्न हों। हम इतने प्रसन्न हों कि हम मौत को |
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और दुख को गलत कर दें। हम इतने आनंदित हों कि मौत और दुख सिकुड़कर मर जाएं। पता भी न चले कि मौत और दुख भी हैं। जो इतनी प्रफुल्लता और आनंद को अपने भीतर संजोता है, वह साधना में गति करता है। साधना की गति के लिए यह बहुत जरूरी है, बहुत जरूरी है…" |
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जिसका अर्थ नींद होता है। दो तरह की नींद संभव है। एक तो नींद, जब आपका शरीर थक जाता है, रात आप सो जाते हैं। वह प्राकृतिक है। दूसरी नींद है, जो चेष्टा करके आप में लाई जा सकती है, इनडयूस्ड स्लीप। योगत्तंद्रा या सम्मोहन या हिप्नोसिस वही दूसरी तरह की नींद है…" |
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ज्योतिष विज्ञान |
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एक, जिसे हम कहें अनिवार्य, एसेंशियल, जिसमें रत्ती भर फर्क नहीं होता। वही सर्वाधिक कठिन है उसे जानना। फिर उसके बाहर की परिधि है: नॉन-एसेंशियल, जिसमें सब परिवर्तन हो सकते हैं। मगर हम उसी को जानने को उत्सुक होते हैं। और उन दोनों के
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बीच में एक परिधि है--सेमी-एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य, जिसमें जानने से परिवर्तन हो सकते हैं, न जानने से कभी परिवर्तन नहीं होंगे। तीन हिस्से कर लें। एसेंशियल, जो बिलकुल गहरा है, अनिवार्य, जिसमें कोई अंतर नहीं हो सकता। उसे जानने के बाद उसके साथ सहयोग करने के सिवाय कोई उपाय नहीं है। धर्मों ने इस अनिवार्य तथ्य की खोज के लिए ही ज्योतिष की ईजाद की, उस तरफ गए। उसके बाद दूसरा हिस्सा है: सेमी-एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य। अगर जान लेंगे तो बदल सकते हैं, अगर नहीं जानेंगे तो नहीं बदल पाएंगे। अज्ञान रहेगा, तो जो होना है वही होगा। ज्ञान होगा, तो ऑल्टरनेटिव्स हैं, विकल्प हैं, बदलाहट हो सकती है। और तीसरा सबसे ऊपर का सरफेस, वह है: नॉन-एसेंशियल। उसमें कुछ भी जरूरी नहीं है। सब सांयोगिक है।… |
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अक्तूबर 2013 न्यूज़लेटर |
ओशो इंटरनेशनल 410 पार्क एवेन्यू, 15 वीं मंजिल, न्यूयॉर्क, एनवाई 10022 |
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