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Quint Buchholz: Giacomond, 1984 |
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आशा की मूढ़ता |
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वर्तमान संकट में, राजनेता, पुजारी और मीडिया "आशा" के बारे में बात करते रहते हैं। क्या यह मददगार है? |
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“आपको उसकी रणनीति देखनी होगी: लोगों को झूठ में रखना ताकि वे दुखी बने रहें। दुखी लोगों को पुजारी, राजनेता, मनोविश्लेषक, सभी प्रकार के धर्मोपदेशकों की आवश्यकता होती है, क्योंकि वे इस तरह के दुख में होते हैं कि वे किसी के भी जाल में पड़ने को तैयार रहते हैं - जो भी उन्हें आशा देता है। आशा लगभग अफीम की तरह है: आप अपने दुख को भूल जाते हैं, आप सुंदर सपने देखना शुरू करते हैं।” ओशो |
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एक नया द्वार – Ek Naya Dwar
निरीक्षण, ऑब्जर्वेशन चाहिए। क्या हो रहा है, उसे देखने के लिए पूरी सजगता होनी चाहिए। पूरे होश, पूरी अटेंशन से जो देखता है...। विज्ञान में ही निरीक्षण जरूरी है, ऐसा नहीं; धर्म में तो और भी ज्यादा जरूरी है। क्योंकि विज्ञान तो पदार्थों की खोज करता है, धर्म तो आत्मा की। विज्ञान में निरीक्षण जरूरी है, लेकिन धर्म में तो निरीक्षण और भी अनिवार्य है। विज्ञान बाहर के पदार्थों का निरीक्षण करता है, धर्म स्वयं के भीतर जो चित्त है उसका। चित्त का निरीक्षण करें। जागें, और जागें, और जागें और देखें चित्त को। देखते-देखते यह क्रांति घटित होती है और चित्त परिवर्तित हो जाता है। ओशो
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माह का ध्यान |
जगत को ऐसे देखो जैसे फिल्म देख रहे हो |
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“इस पूरी जिंदगी को एक मिथक, एक कहानी की तरह देखना। वह है ही, लेकिन तुम इस तरह देखोगे तो तुम दुखी नहीं होओगे। दुख आता है अत्यधिक गंभीरता के कारण। सात दिन के लिए इसका प्रयोग करो, सात दिन तक यही सोचो कि यह जगत एक नाटक है, और तुम वही नहीं रहोगे। सिर्फ सात दिन के लिए! तुम ज्यादा कुछ नहीं खोओगे क्योंकि तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ है ही नहीं।...” ओशो |
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माह का आलेख |
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मनुष्य हमेशा संकट में था |
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“तुम थोड़ा सोचो, संकट कब नहीं था। आदमी जैसा है, संकट सदा रहेगा ही। ऐसे आदमी का संकट ही बना रहेगा। ऐसा आदमी संकट के बाहर हो नहीं सकता। अगर इस संकट को देख कर ही कोई चलता रहे, तो तो फिर इस संकट के बाहर जाने का कोई उपाय नहीं है।” ओशो |
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आशाएं भटका रही हैं |
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“अनुभव पर जीत हो जाती है आशा की। आशा के कारण ही अनुभव से तुम कुछ निचोड़ नहीं पाते सार। तुम्हारा जीवन नहीं बदल पाता। फिर तुम वही भूल करते हो, फिर वही भूल करते हो! और आशा कहे चली जाती है कि इस बार हो गई, कोई बात नहीं! अगली बार सब ठीक हो जाने वाला है। आशा भटकाती है, सम्हाले नहीं है।“ |
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