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न्यूज़लैटर
ऑक्टोबर, 2016
 
अच्छे माता पिता होने का अर्थ
बच्चों के पालन पोषण को लेकर बहुत कुछ लिखा गया है, यदि इसे कार्य समझा जाए तो यह दुष्कर कार्य है I तो एक बच्चे को कुशल वयस्क बना देने के लिए हम अपना श्रेष्ठतम योगदान कैसे दे सकते हैं ? क्या हमें किसी नियम का पालन करना है या उन्हें स्वयं से ही जीवन का अनुभव लेने का अवसर प्रदान करना बेहतर रहेगा ?
बच्चों के पालन पोषण में की जाने वाली प्रमुख गलतियाँ कौन सी हैं ?
"बच्चों के पालन पोषण में की जाने वाली प्रमुख गलतियाँ बहुत सी हैं पर मैं केवल कुछ महत्वपूर्ण गलतियों के बारे में बात करूंगा I पहली बात : यह ख्याल कि वे तुम्हारे हैं I वे तुम्हारे माध्यम से आये हैं , तुम उनके आने का मार्ग हो , लेकिन वे तुम्हारे नहीं हैं I उन पर तुम्हारी मालकियत  नहीं हैं I उनका मालिक होने की धारणा से अनेक गलतियां पैदा हो जाती हैं I
"एक बार तुमने यह सोचना आरम्भ कर दिया कि उन पर तुम्हारी मालकियत है, तो तुम उनको वस्तुओं के तल तक नीचे गिरा देते  हो , क्योकि केवल वस्तुओं पर ही मालकियत की जा सकती है , मनुष्यों पर नहीं I यह तुमसे हो सकने वाला कुरूपतम कृत्य है I और बेचारे बच्चे कितने असहाय हैं,तुम पर कितने निर्भर हैं ,वे बगावत भी नहीं कर सकते है I तुम्हारा जो भी विचार हो उसे वे स्वीकार कर लेते हैं I और उन पर अपनी मालकियत को पक्का करने के लिए जिस पल उनका जन्म होता है तुम उनको ईसाई बना देते हो , तुम उनको हिन्दू बना देते हो, तुम उनको मुसलमान बना देते हो,तुम उनको बौद्ध बना देते हो, तुम उनको यहूदी बना देते हो—तुम जरा भी इन्तजार नहीं कर सकते ! और क्या तुम इसकी परम व्यर्थता को देख नहीं सकते ?"
ओशो, सुकरात जहर 25 के बाद फिर से सदियों, प्रवचन # 3
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ध्यान दर्शन
 
‘ध्या्न दर्शन’ एक छोटी सी पुस्तक है जो साधना-पथ का मूल आधार बन सकती है। ओशो कहते हैं: जीवन के दो आयाम हैं—पहले जानना, फिर करना, जिसे हम विज्ञान का नाम देते हैं। दूसरा आयाम है—पहले करना, फिर जानना, ‍जिसे हम धर्म का नाम देते हैं।
 
पुस्तक
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माह का ध्यान
अनुभव करो कि तुम वजन रहित हो।
जब बैठोगे तब ऐसा अनुभव करो कि तुम वजन रहित हो गए हो, तुम्हारा कोई वजन नहीं है। तुम्हें ऐसा लगेगा को कहीं न कहीं कोई वजन है लेकिन वजन न होने को अनुभव करते रहो। वह आता है। एक क्षण आता है जब तुम अनुभव करते हो कि तुम वजन रहित हो, कि तुम्हारा कोई वजन नहीं है। जब कोई वजन अनुभव नहीं होता तब तुम शरीर नहीं होते, क्योंकि वजन शरीर का होता है, तुम्हारा नहीं। तुम वजन रहित हो।
तुम्हें स्वयं को सम्मोहन से अलग करना है।" मैं शरीर हूं और इसलिए मैं वजन को अनुभव करता हूं" ,यह एक तरह का सम्मोहन है।
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ओशो इंटरनैशनल मेडिटेशन रिज़ार्ट साक्षात्कार
आनंद हेलेन क्विन
"हाल ही में जब मैं ओशो इंटरनैशनल मेडिटेशन रिज़ार्ट से लौटी तो किसी ने मेरे से पूछा, क्या तुम्हारे पैसे वसूल हुए? मैं ठिठकी; क्या कहूं? मुझे मेरी जिंदगी ही वापिस मिल गई थी। वहां जाकर इतने तरह के अनुभव हुए, गहरे तल पर उपचार हुआ। हां, वह अनमोल था। मेरे समीकरण में पैसा वसूल करना बैठता नहीं। वह उस तरह का ब्रेक या छुट्टी नहीं थी। मैं वहां अनुभव करने के इरादे से पहुंची, कुछ योजना बनाकर गई थी लेकिन वहां पहुंचते ही वे सब पिघल गईं। शब्द बयान नहीं कर सकते कि मैंने क्या अनुभव किया। एक ही बात जो मेरे जेहन में आती है वह यह कि मैंने असीम सौंदर्य को अनुभव किया। वह बहुत खूबसूरत जगह है, खूबसूरत ऊर्जा, सुंदर लोग। …
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माह का आलेख
 
क्या जिंदगी एक पुराना जोक है?
एक दफ्तर में एक बॉस था, उसे पुराने जोक सुनाने की आदत थी। अब चूंकि बॉस था इसलिए सभी मातहत उसके जोक पर हंसते भी थे। एक दिन उसकी सेक्रेटरी बॉस का जोक सुनने पर नहीं हंसी, चुप ही रही। एक नये कर्मचारी ने पूछा, तुम क्यों नहीं हंसी? रोज तो बड़े जोर से हंसती हो। लड़की ने कहा, ' मैंने इस्तीफा दिया है। आज मेरा आखिरी दिन है।'
आप पुराना जोक दुबारा नहीं सुन सकते लेकिन पुरानी जिंदगी जीये चले जाते हैं -- वही ढर्रा,वही ढांचा। वही आदतें और वही रिश्ते-नाते। इसीलिए जिंदगी उबाऊ हो जाती है। जबकि मन को नित नयापन चाहिए नहीं तो मन पर काई जमती है।
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ताज़ा खबरें
ओशो म्युज़िक एण्ड मानसून फेस्टिवल 2016
इस साल पानी जैसे जम कर बरसा, उसी तरह लोग भी जम कर बरसे मानसून फेस्टिवल में। यह न कोई धार्मिक त्योहार था, न आध्यात्मिक प्रसंग, लेकिन प्रकृति के वरदान का उत्सव मनाने के लिए ओशो के प्रेमी इकट्ठे हुए थे। प्रति दिन आठ संगीत महफिलें और दस ओशो ध्यान प्रयोग इस वर्ष मे मानसून फेस्टिवल की विशेषता थी। लोग ज़ोरबा और बुद्ध एक साथ जी रहे थे।
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भगवान - शैतान
भगवान और शैतान हमारे शब्द जब किसी चीज को हम पसंद नहीं करते, तो हम कहते हैं, शैतान से जुड़ा है; और किसी चीज को जब हम पसंद करते हैं, तो हम कहते हैं, भगवान से जुड़ा है।
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परमात्मा के समीप वास है उपवास
जो उपवास का अर्थ है, वही उपासना अर्थ है। दोनों में जरा भेद नहीं। दोनों एक ही शब्द के निर्माण हैं।
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