Trouble viewing this email? Click here. |
ऑनलाइन संस्करण । सदस्यता लें । किसी मित्र को भेजें । OSHO.com दौरा
|
|
|
इंटरनेशनल न्यूज़लेटर |
दिसंबर 2013 |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
तुम्हारा जीवन तुम्हारा अपना निर्माण है, समझे? |
“ ओशो, ध्यान करने से कभी-कभी मैं चाहता हूं कि लोगों से हटकर अकेला बैठ जाऊं ताकि मैं सचमुच अपने भीतर गहरे जा सकूं और आत्म निर्भर हो सकूं। लेकिन इससे मेरी प्रेमिका नाराज होती है। मैं क्या करूं…"
“तुम गलत व्याख्या कर रहे हो। तुम परस्पर निर्भरता को आत्मनिर्भरता समझ रहे हो।यह एक गलत धारणा है, और इस धारणा की वजह से एक गलत आकांक्षा पैदा होती है कि आत्म निर्भर कैसे हों।एक गलती से दूसरी गलती पैदा होती है…" |
|
|
|
और पढ़ें>> |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
यात्री के लिये |
“कब करना? जब भी तुम्हें समय मिले। कोई निश्चित समय तय करने की जरूरत नहीं है। जो भी समय उपलब्ध हो उसका उपयोग करो। बाथरूम में अगर |
|
|
दस मिनट का समय हो तो शावर के नीचे बैठो और ध्यान करो। सुबह, दोपहर, चार-पांच बार छोटे-छोटे अंतरालों के लिए -- पांच मिनट--ध्यान करो। और तुम देखोगे कि यह सतत पोषण देता है।
अवधि - कुछ मिनटों के लिए
पहला चरण: श्वास को शिथिल करो। और कुछ नहीं। पूरे शरीर को शिथिल करने की जरूरत नहीं है। रेलगाड़ी में या हवाई जहाज में, या कार में, कोई नहीं जानेगा कि तुम कुछ कर रहे हो। सिर्फ सांस की प्रक्रिया को धीमा करो ऐसे ही जैसे वह स्वाभाविक रूप से होती है…" |
|
और पढ़ें>> |
|
|
|
|
|
|
|
|
मा ध्यान शक्ति |
अगर आप सघन वृक्षों से घिरे बुद्ध ग्रोव के पास से गुज़र रहे हों तो वहां पर कभी-कभी विशाल चित्र रखे हुए देखेंगे। उन चित्रों मे जो ताजगी है वह आपको |
|
|
बुलाती हुई सी प्रतीत होती है। ये चित्र कोई निष्णात चित्रकारों द्वारा बनाये हुए नहीं है अपितु ध्यानियों ने बनाए हैं जिन्होंने कभी हाथ में ब्रुश नहीं लिया होगा। और उन चित्रकारों को ऐसे संचालकों ने सिखाया है जो स्वयं कुशल चित्रकार नहीं हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है क्योंकि इस कोर्स की संचालिका ध्यान शक्ति कहती हैं कि "रचनात्मकता हमारा स्वभाव है।" शक्ति सहजता से यह चित्रकला सिखाती है… |
|
और पढ़ें>> |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
“किसी ने प्रश्न पूछा है: यदि लोग प्रामाणिक और नैसर्गिक हुए, और यदि वे मुस्कुराए नहीं क्योंकि मुस्कुराहट झूठी होती है, और यदि वे सड़कों पर चीखने चिल्लाने लगें तो दुनिया में क्या होगा…" |
|
और पढ़ें>> |
|
|
|
|
|
|
|
धन की वर्षा हो जाएगी। बस गहरे ध्यान में मांगो, और यह हो जाएगा।
यह तुम्हारी वासनाओं की भाषा बोलना है। सत्य इससे एकदम उल्टा है। अगर तुम मुझसे पूछो, अगर तुम सच में ध्यान करो तो तुम जीवन में असफल रहोगे, बुरी तरह असफल। अगर तुम सफल हो रहे हो, वह सफलता खो जाएगी क्योंकि ध्यान तुम्हें इतना शांत, इतना अहिंसक, इतना प्रेमपूर्ण, इतना अ-प्रतिस्पर्धी, इतना अहंकारहीन बना देगा, कि सफलता की कौन परवाह करता है…" |
|
और पढ़ें>> |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
गीता दर्शन – भाग आठ |
|
|
मनुष्य-जाति के इतिहास में उस परम निगूढ़ तत्व के संबंध में जितने भी तर्क हो सकते हैं, सब अर्जुन ने उठाए। और शाश्वत में लीन हो गए व्यक्ति से जितने उत्तर आ सकते हैं, वे सभी कृष्ण ने दिए। इसलिए गीता अनूठी है।
|
|
वह सार-संचय है; वह सारी मनुष्य की जिज्ञासा, खोज, उपलब्धि, सभी का नवनीत है। उसमें सारे खोजियों का सार अर्जुन है। और सारे खोज लेने वालों का सार कृष्ण हैं।
ओशो
इस पुस्तक में गीता के सत्रहवें व अठारहवें अध्याय – ‘श्रद्धात्रय-विभाग-योग’ व ‘मोक्ष-संन्यास-योग’ – तथा विविध प्रश्नों व विषयों पर चर्चा है… |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
दिसंबर 2013 न्यूज़लेटर |
ओशो इंटरनेशनल 410 पार्क एवेन्यू, 15 वीं मंजिल, न्यूयॉर्क, एनवाई 10022 |
|
|