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न्यूज़लैटर
नवंबर, 2017
 
 
स्त्री
सोशल मीडिया में #MeToo की बाढ़ सी आ गई है, यह एक कॉल साइन है जो यौन उत्पीड़न के शिकार महिलाओं को आगे आकर बोलने के लिए प्रोत्साहित करने के आंदोलन का हिस्सा है। यह अभियान दस साल पहले स्थापित किया गया था, लेकिन अब इसने इस मुद्दे के परिमाण को सामने लाने की ठान ली है चाहता है कि समाज इसे रोकने के लिए कदम उठाए। फिर भी महिलाओं का उत्पीड़न पितृत्व और निजी संपत्ति की उत्पत्ति की खोज के बाद से चला आ रहा है। जबकि, नारीवादी आंदोलन ने पितृसत्तात्मक मानसिकता को संबोधित करने में काफी प्रगति की है, और अब यह हैशटैग भी महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को खुल कर दिखा रहा है, ओशो की दृष्टि इससे भी ज्यादा स्पष्ट है ।
“पुरुषों ने सदियों से स्त्रियों पर शासन किया है। उसे हर अवसर और मौका दिया गया है और स्त्री को लगातार दमित कर दिया गया है, उसे अपंग कर दिया गया है। उसे कभी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम करने की अनुमति नहीं दी गई है। हम नहीं जानते कि यही कारण है कि महिलाओं के भीतर कितने ही गौतम बुद्ध खिलने से वंचित रह गए हैं। हमें नहीं पता है कि इस कारण और कितने ही अल्बर्ट आइंस्टीन हैं जिनके विकास की संभावना पर रोक लग गई।"
 
     
 
जीवन दर्शन
प्रेम पर शिक्षा को केंद्रित करना है। तब, जो हम सीखेंगे, वह तो हम सीखेंगे ही, साथ ही हमारा प्रेम भी विकसित होगा। अगर एक व्यक्ति संगीत को प्रेम करना सीख ले, तो संगीत तो सीखेगा ही, और स्मरण रहे, जो प्रेम में सीखा जाता है, वही केवल सचमुच सीखा जाता है, बाकी सचमुच नहीं सीखा जाता। संगीत तो वह सीखेगा ही, साथ ही किनारे-किनारे प्रेम भी सीखेगा। हो सकता है एक दिन संगीत भूल भी जाए, लेकिन प्रेम पीछे रह जाएगा, जो उसके जीवन को आंतरिकता से भरेगा। ---ओशो
 
Book
 
     
 
माह का ध्यान
 
"तुम अपने भीतर एक छोटी सी स्थिर आवाज़ लिए हुए हो जो अनसुनी है, और उन आवाजों की भीड़ में जो तुम पर थोप दी गई हैं उसे खोज पाना लगभग असंभव है। पहले तुम्हें उस सब शोरगुल से छुटकारा पाना होगा, एक विशिष्ट गुणवत्ता की चुप्पी और शांति प्राप्त करनी होगी। तभी एक दिन अचानक तुम स्वयं की आवाज को पा कर चौंक जाओगे। वह सदा वहां एक अंतरधारा बन कर उपस्थित ही थी। "ओशो
 
     
 
माह का आलेख
 
स्त्री किसी की छाया नहीं है
स्त्री पुरुष की छाया से ज्यादा अस्तित्व नहीं जुटा पाई है। इसलिए जहां पुरुष होता है, स्त्री वहां है। लेकिन जहां छाया होती है वहां थोड़े ही पुरुष को होने की जरूरत है!
 
     
 
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स्त्री पुरुष की छाया से ज्यादा अस्तित्व नहीं जुटा पाई है। इसलिए जहां पुरुष होता है, स्त्री वहां है। लेकिन जहां छाया होती है वहां थोड़े ही पुरुष को होने की जरूरत है!
 
     
     
 
 
     
     
 
 
 
     
     
 
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