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ऑनलाइन संस्करण । सदस्यता लें । किसी मित्र को भेजें । OSHO.com दौरा
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इंटरनेशनल न्यूज़लेटर सितंबर, 2013 |
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आपका मूल लक्षण |
मुझे अपने मित्र की मद्यपान की आदत के बारे में बहुत चिंता है।
“दूसरे के विषय में किसी बात को लेकर सोचो मत। और तुम यही सोचते रहते हो। निन्यानबे प्रतिशत बातें जो तुम सोचते हो उनका लेना-देना दूसरों से रहता है। छोड़ दो, उन्हें इसी वक्त छोड़ दो …" |
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आभामंडल का कवच |
कब: रोज रात को सोने से पहले। और सुबह उठते ही।
अवधि: 4-5 मिनट
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पहला चरण: एक आभामंडल की कल्पना करो…
“अपने बिस्तर पर बैठकर अपने शरीर के चारों ओर एक आभामंडल की कल्पना करो, शरीर से ठीक छह इंच दूरी पर, बिलकुल शरीर की आकृति की तरह…" |
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आनन्द सुजाती |
संगीत की रुचि मुझे बचपन से ही रही है।गायन से मैंने अपनी संगीत की यात्रा शुरू की। घर में एक बहुत पुराना सितार रखा हुआ था, एक दिन मैंने उसे |
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बजाना शुरू किया, जब मैं बारह वर्ष की थी। तबसे मेरा सितार की तरफ रुझान बढ़ने लगा। मेरे पिताजी ने मुझे पूरा सहयोग किया। वह स्वयं भी बहुत अच्छे गायक कलाकार हैं, और थियेटर आर्टिस्ट भी हैं। घर में मुझे… |
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दुख का उत्सव मनाएं ! |
“दुख के बारे में भी उत्सव की दृष्टि ही रखो। उदाहरण के लिए: तुम उदास हो-- तो उदासी के साथ तादात्म्य मत बनाओ…साक्षी बनें रहो और उदासी की |
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घड़ी का मज़ा लो क्योंकि उदासी का अपना एक सौंदर्य है, जो तुमने कभी देखा ही नहीं। तुम अपने को उदासी से इस तरह जोड़ लेते हो कि उदास घड़ी की गहराइयों का सौंदर्य देख ही नही पाते। अगर…" |
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स्वास्थ्य, ध्यान और स्वप्न |
ऐसा क्यों होता है कि सक्रिय-ध्यान में गहरी व तेज़ श्वसन-क्रिया के बाद शरीर बहुत हल्का महसूस करने लगता है?
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“यह सत्य है कि शरीर ध्यान के पश्चात हल्का महसूस करता है। ऐसा होगा ही, क्योंकि शरीर का होने का बोध केवल भारीपन का है। जिसे हम बोझीलापन कहते हैं वह और कुछ नहीं अपितु शरीर…" |
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ज्योतिष विज्ञान |
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एक, जिसे हम कहें अनिवार्य, एसेंशियल, जिसमें रत्ती भर फर्क नहीं होता। वही सर्वाधिक कठिन है उसे जानना। फिर उसके बाहर की परिधि है: नॉन-एसेंशियल, जिसमें सब परिवर्तन हो सकते हैं। मगर हम उसी को जानने को उत्सुक होते हैं। और उन दोनों के
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बीच में एक परिधि है--सेमी-एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य, जिसमें जानने से परिवर्तन हो सकते हैं, न जानने से कभी परिवर्तन नहीं होंगे। तीन हिस्से कर लें। एसेंशियल, जो बिलकुल गहरा है, अनिवार्य, जिसमें कोई अंतर नहीं हो सकता। उसे जानने के बाद उसके साथ सहयोग करने के सिवाय कोई उपाय नहीं है। धर्मों ने इस अनिवार्य तथ्य की खोज के लिए ही ज्योतिष की ईजाद की, उस तरफ गए। उसके बाद दूसरा हिस्सा है: सेमी-एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य। अगर जान लेंगे तो बदल सकते हैं, अगर नहीं जानेंगे तो नहीं बदल पाएंगे। अज्ञान रहेगा, तो जो होना है वही होगा। ज्ञान होगा, तो ऑल्टरनेटिव्स हैं, विकल्प हैं, बदलाहट हो सकती है। और तीसरा सबसे ऊपर का सरफेस, वह है: नॉन-एसेंशियल। उसमें कुछ भी जरूरी नहीं है। सब सांयोगिक है।… |
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सितंबर 2013 न्यूज़लेटर |
ओशो इंटरनेशनल 410 पार्क एवेन्यू, 15 वीं मंजिल, न्यूयॉर्क, एनवाई 10022 |
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